रतनपुर
दिशाबिलासपुर – कोरबा मुख्यमार्ग पर 25 कि.मी. पर स्थित आदिशक्ति महामया देवि कि पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का प्राचीन एवं गौरवशाली इतिहास है। त्रिपुरी के कलचुरियो ने रतनपुर को अपनी राजधानी बना कर दीर्घकाल तक छ्.ग. मे शासन किया। इसे चतुर्युगी नगरी भी कहा जाता है. जिसका तात्पर्य इसका अस्तित्व चारो युगों में विद्यमान रहा है | राजा रत्नदेव प्रथम ने रतनपुर के नाम से अपनी राजधानी बसाया |
श्री आदिशक्ति माँ महामाया देवी :- लगभग नौ वर्ष प्राचीन महामाया देवी का दिव्य एवं भव्य मंदिर दर्शनीय है | इसका निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा ग्यारहवी शताबदी में कराया गया था | १०४५ ई. में राजा रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गाँव में शिकार के लिए आये थे, जहा रात्रि विश्राम उन्होंने एक वटवृक्ष पर किया | अर्ध रात्रि में जब राजा की आंखे खुली, तब उन्होंने वटवृक्ष के नीचे अलौकिक प्रकाश देखा | यह देखकर चमत्कृत हो गई की वह आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है | इसे देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे |सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गये और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया तथा १०५०ई. में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया गया | मंदिर के भीतर महाकाली,महासरस्वती और महालक्ष्मी स्वरुप देवी की प्रतिमाए विराजमान है| मान्यता है कि इस मंदिर में यंत्र-मंत्र का केंद्र रहा होगा | रतनपुर में देवी सती का दाहिना स्कंद गिरा था | भगवन शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था | जिसके कारण माँ के दर्शन से कुंवारी कन्याओ को सौभाग्य की प्राप्ति होती है | नवरात्री पर्व पर यहाँ की छटा दर्शनीय होती है | इस अवसर पर श्रद्धालूओं द्वारा यहाँ हजारो की संख्या में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जवलित किये जाते है |
कैसे पहुंचें:
बाय एयर
बिलासपुर (37 किमी) निकटतम हवाई अड्डा दिल्ली, भोपाल, जबलपुर और प्रयागराज जुड़ा हुआ है। और रायपुर (159 किमी) निकटतम हवाई अड्डा मुंबई, दिल्ली, नागपुर, हैदराबाद, कोलकाता, बेंगलुरु, विशाखापत्तनम और चेन्नई से जुड़ा हुआ है।
ट्रेन द्वारा
हावड़ा-मुंबई मुख्य मार्ग रेलमार्ग पर बिलासपुर (25 कि.मी.) समीपस्थह रेल्वेा जंक्शहन है।
सड़क के द्वारा
:- बिलासपुर से रतनपुर के लिये हर एक घंटे में बस तथा टैक्सी इत्याुदि वाहन सुविधा है।